Saturday, October 31, 2009

कोशिश

Description: I had written this poem on a bus from Manipal to Suratkal. Actually i was going to participate in a poetry competition to be held at NIT surathkal. On the bus i came to know that topic was already given to the participants and we had to go and recite the poem there. I was stunned to know this as i had thought that participants would be given topic on the spot and they will have to compose the poem in some limited time. At first i decided to quit then thought lets give a try. I had one hr time to complete my poem. When bus was entring the gate of NIT, I stopped writting. And best thing is that I got the first prize for this :)

शब्द है यह छोटा सा
गहराईहै इसमे सागर सी
गर होता नही यह जीवन में
जिंदगी छलकती अधभरी गागर सी

स्वप्न और कोशिश ने ही
सृष्टि की संरचना की है
इन दोनों ने ही मिलकर
मानव इतिहास की रचना की है

स्वप्न दिखाती है राह नई
कोशिश उसपे चलने को कहते है
स्वप्न तो देखते है सारे
कोशिश कम जन ही करते है

कोशिश ही है वो कुंजी जो
सफलता की गाड़ी को गति देती है
कोशिश ही है वो पूंजी जो
जीवन में सुख शान्ति भर देती है

कोशिश ही है वो अनमोल रतन
जिसने अनहोनी को होनी बनाया है
कोशिश के बल पे ही युगपुरुषों ने
असंभव कार्य करके दिखाया है

कोशिश करके झी नवजात शिशु
अपने पग पर चल पड़ता है
कोशिश करके ही नवल खग वृन्द
इस अनंत गगन में उड़ने लगता है

कोशिश करके ही मानव आज
नीले आसमान में है तैर रहा
कोशिश के बल पर ही हमने
सागर तलसे है मोटी गहा

कोशिश ने ही तो हमको
है चाँद तारों तक पहुँचाया
कोशिश ने ही तो इस विशाल वशुंधरा को
है एक छोटा सा गाँव बनाया

कोशिश करके ही रामचंद्र ने
सागर पर पुल बनायी थी
कोशिश करके ही श्री कृष्ण ने
नाग फन पर नृत्य दिखाई थी

कोशिश करके ही हनुमान ने
किष्किन्धा पर्वत लंका तक पहुंचाई थी
कोशिश के बल पर ही अर्जुन ने
महाभारत जीत दिखाई थी

गर चाहता है कोई भी नर
की वो सफलता के रस का पान करे
तो किसी कार्य की पूर्ति हेतु
कोशिश वो अविराम करे



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