Saturday, October 31, 2009

नारी गाथा

युग -युग से होते आया है
युग -युग तब होते रहेगा
कार्य यह अविराम
तीनों लोकों में हुआ है
मनुज देव दानव ने किया है
नारी का जयगान

है कौन सा आकर्षण उनमे
है कौन सा चुम्बक उनमे
जो अदृश्य है वात सामना
क्या है उनकी असली ताक़त
क्यों है सबको उनकी चाहत
सब हैं इस बात से अनजान
हर नर जिसको हर दम गहता है
हर नर के मन में जो रहता है
होता है किसी नार का नाम
नारी से निर्धारित होता है
नारी पर आधारित होता है
नर का हर परिणाम

तपस्वी को पथभ्रष्ट करना
पथभ्रष्टों को सत्पथ पर लाना
नारी के लिए है सबसे आसान
दुर्योधन जैसा सुरमा मरा
रावण ने भी छोड़ दी धरा
थे वो जो नारी बल से अनजान

नारी के जीवन में आने से
नर पा जाता है नव प्रवाह
नारी को अपना लेने से
नर में आता है नवीन उत्साह

ऊपर की सारी बातें सुनकर
नारी को अर्धांगिनी कहना
करना है उनका अपमान
इसीलिए मैं नारी को
देता हूँ पुरान्गिनी का नया नाम

1 comment:

SATYAKAM said...

Sachai ye gahar hai
chintan-vishay prakhar hai
ki nari-garv se hi
ye sristi ne janam liya
us nari ko humne
aadi sakti ka tam diya

us prasv wedna ko jo sehti
naya jivan jo garv me deti
roop leti hai wo tyag aur prem ki
to kyu na rahe unki aakhen nam si!

ye sab ne hai kaha
jo dete hum,
wo hume hi milta
Prem hi to hai
jo wo deti hai
Prem hi to hai
unhe milta.

Pankaj! baat ek aur bhi hai
kehte hai jise hum Nar,
wo nari hi hai
Is sristi mei Purus sirf "WO" hai
hum sab nari hi hai.
Baat hai ye sachi aur gehri bhi hai

Aabhas hua jab mujhe ye,
laga satya to nyari hi hai!

~SatyaKam