Tuesday, August 17, 2010

विपरीत परिस्थिति

चंद लम्हों का गम होता है
सफलता का दौर कम होता है
मुस्कान मुख की खो जाती है
आँखें हर दम ही नम होती है

आगे का पथ स्पष्ट नहीं दिखता है
मंजिल भी जाकर कहीं छिपता है
इस आलम की बात क्या करें
इसमे सोना भी मिटटी के भाव बिकता है

जिनको हम अपना मानते थे
वो आज मुख मोड़ nikal जाते हैं
जो प्रिय ही नहीं , प्रियतम भी थे
व भी दिल तोड़ मुस्काते है

हर फैसले पे प्रश्नचिंह
हर चाल गलत तब लगाती है
अविश्वाश तब पनपता है
शक और क्रोध का घर सजता है

इस वक़्त को , इस दौर को
इन लम्हों को, इस आलम को
कहते है हम विपरीत परिस्थिति
पर यही वो नाजुक क्षण होते है
जब प्रस्फुटित होती है मनुष्य की वास्तविक आकृति

कहलाती है जो विपरीत परिस्थिति
वो मनुष्य का खुद से पहचान कराती है
यही वो दौर होता है जीवन में
जो मनुष्य को सुदृढ़ , सुसंकल्प और सबल बनाती है

गर उस गम को हसकर झेल लिया
असफलता के दुःख ना जीवन में मोल दिया
खोयी मुस्कान लौट फिर आएगी
आँखों की नमी ही उसमे चमक जगाएगी

पथ की बात करें हम क्या
मंजिल खुद चलकर हम तक आएगी
छू ले हम गर मिटटी को भी
तो वो सोना बन अपनी चमक दिखाएगी

वो विपरीत दौर नहीं होता
वो तो हंस मायावी होता है
जो साथ रहे वो दूध सा स्वच्छ
जो छोड़े साथ वो , पानी सा बह जाता है

गर अडिग रहे फैसले पे हम
हर चाल विजय दिलाएगी
विश्वास का दामन ना छोड़ा तो
सफलता जग में जयजयकार कराती है

याद रहे कुछ भी हो जाए
तुम शक और क्रोध से दूर रहना
और कभी यह दौर आये तो
हंसकर इसका स्वागत करना

Tuesday, August 10, 2010

हे देव!! मै मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं| भाग -१

तेरा नमन किया, स्मरण किया
वंदना किया, तुझे वरन किया
तेरे हर फैसले को उचित समझ
सदैव ही उसका आवरण किया

पर जब असफलता हीं
जीवन की कहानी बन जाए
जब ऐसे विपरीत दौर का
दिखता मुझे कोई अंत नहीं
फिर मै कैसे तेरा स्मरण करूँ
हे देव!! मै एक मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं

गर बात मुझ तक ही सिमित रहती तेरी
मै कभी भावों को मुखरित होने नहीं देता

हे देव!! मै मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं| भाग -२

कहीं सूखे की मार
कहीं बाढ़ से मची तबाही है
कहीं नक्सलियों का प्रकोप
कहीं आतंक को मिल रही बाहबाही है

हैं मंत्री भ्रष्ट , संत्री है भ्रष्ट
भ्रष्ट सौ में से ९९ अधिकारी हैं
ये कैसा असाध्य रोग लगा देश को
यहाँ तो भ्रष्ट बननेके लिए मची मारामारी है

इस तबाही का, इस प्रकोप का
भ्रष्टाचार और आतंक के तोप का
क्या होगा कभी भी अंत नहीं
हे देव !! कैसे मैं तेरा स्मरण करूँ अभी भी
मै मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं

धरती का स्वर्ग था देश का मुकुट
आज वहां जाने से भी डर लगता है
जल रहा है मेरा स्वर्ग वहां
तू आज कुछ चमत्कार क्यूँ नहीं करता है

जब मासूम बच्चो का
बन्दुक खिलौना बन जाए
मुर्गों की बांग नहीं जिनको
गोलियों की आवाज हर सुबह जगाये

तब कैसे ना स्वर्ग वहाँ से
चला जाए दूर कहीं
पर तुम तो सर्वेसर्वा हो
फिर क्यूँ बैठे हो मूक कहीं

मेरी बातें हैं सत्य प्रभु
ये कोई कहानी मनगढ़ंत नहीं
हे देव!! कैसे तेरा स्मरण करूँ अभी भी
मैं मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं

चंगेज ने पहले लूटा
फिर अंग्रेज की बारी थी
और आज भी नेता जी लुट रहे हैं
तब यकीन हुआ की वास्तव में
सोने की चिड़िया देश हमारी थी

घोटालों के अनगिनत नाम हमेशा
याद रहती सबके मुह - जुबानी है
क्योंकि देश के सामने आता
हरदिन घोटालों की, एक न एक नवीन कहानी है

इतना सब कुछ होने पर भी
कैसे होता तेरी निंद्रा का अंत नहीं
हे देव!! कैसे तेरा स्मरण करूँ अभी भी
मैं मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं

राष्ट्र मंडल खेल था
बनाने वाला अपने देश की शान
पर चमत्कार देखो तुम भी
मिल गया उसे भ्रष्ट मंडल खेल का नाम

नामकरण यहीं से शुरू हुआ नहीं
आई पी एल , इंडियन प्रिमिएर लीग से
इंडियन पैसा लीग था बना अभी
क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष
इस पैसाखोरी में है मिले सभी

वो सीना तान के कहते है हम लूटेंगे
क्योंकि हम किसी मठ के महंत नहीं
हे देव!! कैसे तेरा स्मरण करूँ अभी भी
मैं मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं