कैसे मै कहूँ कुछ कहा ना जाए
कहे बिना अब रहा न जाए
करने बैठा हु दुनिया का सबसे मुश्किल काम
बैठने से पहले लगता था यह सबसे आसान
कौन हूँ मै? कैसा हूँ मै ?
क्या क्या है मेरी पहचान ?
बन जाता हूँ मूक बधिर
होता हूँ इन प्रश्नों के आगे परेशान
लेखनी हाथ से छुटरही है
मसि भी उसकी सुख रही है
कैसे कहूँ उस कहानी को
अब तक जिसको नही कही है
अच्छाई की है कुछ बुँदे
बुराई से भरी है गागर
सदनामी है ताल तलैया
बदनामी की गहराई है सागर
व्याख्यान अच्छाई की करूँ तो
अंहकार झलकता है इसमे
बुरे की बात करूँ मै
हिम्मत इतनी नही है मुझमे
कहानी के शुरू होने से पहले ही
विराम उसे देता हूँ मै
अपनी इस चोटी भूल के किए
माफ़ी मांग लेता हूँ मै
Saturday, October 31, 2009
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