Saturday, October 31, 2009

नाजुक दौर

नाजुक है यह दौर आज का
बड़ी विकल है परिस्थिति
साम्राज्य तिमिर का फ़ैल रहा है
विलोपित हो रही है भविष्य की आकृति

सोने की चिडियां कभी थे हम
अब बिना पंख पखेरू हैं
कल वामन वीर भुजाएं थी
आज झुकी हुई भी मेरु है

एक बार मति थी मारी गई
जब गुलामी ने गुमनाम किया था
अपने अस्तित्व की गाड़ी का
गोरों को लगाम दिया था

शहादत की बलि बेदी पर
सहस्त्र वीरों ने बलिदान किया था
हर माँ, बहन, बहु, बेटी ने
अपना सर्वस्व कुर्बान किया था

ऐसे मर्माहत हालातों से होकर
अपनी खोयी इज्ज़त पायी थी
लहू सागर में तैर , कुर्बानी की नईया पर
आज़ादी की दुल्हन बैठ कर आई थी

भूल गए थे हम सारे दुःख दर्द
हर जगह पे अब खुशहाली थी
नाच रहा था मन मातंग बन
चकाचोंध उजियाली थी

धीरे -धीरे हम भारतवासी
शहीदों के शहादत को भूलते रहे
देश की चिंता छोड़
अपनी खुशियों के हिंडोले में
दिन रात मगन हो झुलाते रहे

जिस राष्ट्र के युगपुरुषों ने
सकल संसार का पथ पर्दर्शित था किया
आज उसी राष्ट्र की करोड़ों की आबादी ने
किसी अन्य राष्ट्र से नेता है अपना उधार लिया

आज कही स्वर्ग में झुकी होगी
सर सम्राट अशोक की
आंखों से अश्रु धार बही होगी
गाँधी सुभाष नेहरू और विवेकानंद की

नारी गाथा

युग -युग से होते आया है
युग -युग तब होते रहेगा
कार्य यह अविराम
तीनों लोकों में हुआ है
मनुज देव दानव ने किया है
नारी का जयगान

है कौन सा आकर्षण उनमे
है कौन सा चुम्बक उनमे
जो अदृश्य है वात सामना
क्या है उनकी असली ताक़त
क्यों है सबको उनकी चाहत
सब हैं इस बात से अनजान
हर नर जिसको हर दम गहता है
हर नर के मन में जो रहता है
होता है किसी नार का नाम
नारी से निर्धारित होता है
नारी पर आधारित होता है
नर का हर परिणाम

तपस्वी को पथभ्रष्ट करना
पथभ्रष्टों को सत्पथ पर लाना
नारी के लिए है सबसे आसान
दुर्योधन जैसा सुरमा मरा
रावण ने भी छोड़ दी धरा
थे वो जो नारी बल से अनजान

नारी के जीवन में आने से
नर पा जाता है नव प्रवाह
नारी को अपना लेने से
नर में आता है नवीन उत्साह

ऊपर की सारी बातें सुनकर
नारी को अर्धांगिनी कहना
करना है उनका अपमान
इसीलिए मैं नारी को
देता हूँ पुरान्गिनी का नया नाम

कोशिश

Description: I had written this poem on a bus from Manipal to Suratkal. Actually i was going to participate in a poetry competition to be held at NIT surathkal. On the bus i came to know that topic was already given to the participants and we had to go and recite the poem there. I was stunned to know this as i had thought that participants would be given topic on the spot and they will have to compose the poem in some limited time. At first i decided to quit then thought lets give a try. I had one hr time to complete my poem. When bus was entring the gate of NIT, I stopped writting. And best thing is that I got the first prize for this :)

शब्द है यह छोटा सा
गहराईहै इसमे सागर सी
गर होता नही यह जीवन में
जिंदगी छलकती अधभरी गागर सी

स्वप्न और कोशिश ने ही
सृष्टि की संरचना की है
इन दोनों ने ही मिलकर
मानव इतिहास की रचना की है

स्वप्न दिखाती है राह नई
कोशिश उसपे चलने को कहते है
स्वप्न तो देखते है सारे
कोशिश कम जन ही करते है

कोशिश ही है वो कुंजी जो
सफलता की गाड़ी को गति देती है
कोशिश ही है वो पूंजी जो
जीवन में सुख शान्ति भर देती है

कोशिश ही है वो अनमोल रतन
जिसने अनहोनी को होनी बनाया है
कोशिश के बल पे ही युगपुरुषों ने
असंभव कार्य करके दिखाया है

कोशिश करके झी नवजात शिशु
अपने पग पर चल पड़ता है
कोशिश करके ही नवल खग वृन्द
इस अनंत गगन में उड़ने लगता है

कोशिश करके ही मानव आज
नीले आसमान में है तैर रहा
कोशिश के बल पर ही हमने
सागर तलसे है मोटी गहा

कोशिश ने ही तो हमको
है चाँद तारों तक पहुँचाया
कोशिश ने ही तो इस विशाल वशुंधरा को
है एक छोटा सा गाँव बनाया

कोशिश करके ही रामचंद्र ने
सागर पर पुल बनायी थी
कोशिश करके ही श्री कृष्ण ने
नाग फन पर नृत्य दिखाई थी

कोशिश करके ही हनुमान ने
किष्किन्धा पर्वत लंका तक पहुंचाई थी
कोशिश के बल पर ही अर्जुन ने
महाभारत जीत दिखाई थी

गर चाहता है कोई भी नर
की वो सफलता के रस का पान करे
तो किसी कार्य की पूर्ति हेतु
कोशिश वो अविराम करे



अपनी कहानी

कैसे मै कहूँ कुछ कहा ना जाए
कहे बिना अब रहा न जाए
करने बैठा हु दुनिया का सबसे मुश्किल काम
बैठने से पहले लगता था यह सबसे आसान
कौन हूँ मै? कैसा हूँ मै ?
क्या क्या है मेरी पहचान ?
बन जाता हूँ मूक बधिर
होता हूँ इन प्रश्नों के आगे परेशान
लेखनी हाथ से छुटरही है
मसि भी उसकी सुख रही है
कैसे कहूँ उस कहानी को
अब तक जिसको नही कही है
अच्छाई की है कुछ बुँदे
बुराई से भरी है गागर
सदनामी है ताल तलैया
बदनामी की गहराई है सागर
व्याख्यान अच्छाई की करूँ तो
अंहकार झलकता है इसमे
बुरे की बात करूँ मै
हिम्मत इतनी नही है मुझमे
कहानी के शुरू होने से पहले ही
विराम उसे देता हूँ मै
अपनी इस चोटी भूल के किए
माफ़ी मांग लेता हूँ मै

Friday, October 30, 2009

गाँव हमारा

गाँव हमारा कितना प्यारा
है वो मेरी आंखों का तारा
मई भी हु उसका राजदुलारा
वो है इस धरती का ध्रुव तारा
गाँव हमारा ......

लोग वहाँ के कितने सच्चे
सारे के सारे के सारे है अच्छे
अभी भी जब मई घर जाता हूँ
गोडलागी भैया कहते आते है बच्चे
गाँव हमारा ......

पूरब में है आम की बगिया
पश्चिम में बहती है नदिया
उत्तर भर हमको है प्यारा
दक्षिण में है घर हमारा
गाँव हमारा ......

अगर कभी वो लड़ जाते है
होल में फ़िर मिल जाते है
साथ में मिल कर वो गाते है
होली चयितार दुबारा
गाँव हमारा ......

कभी बाबु दादा के दूर पर
कभी स्कूल के चबूतरा पर
कभी पश्चिम भर पीपल के निचे
अभी खुलता है तास का पिटारा
गाँव हमारा ......

अस्सी वर्ष के बुडे से भी
करता मजाक है नन्हा सा एक प्यारा
पर जीतनी इज्जत पहले मिलाती थी
अभी भी मिलता है वो सारा
गाँव हमारा .......

दूसरों के खेतों के चने का
बच्चे अभी भी होरहा खाते है
बच्चे क्या बुडे भी चुराकर
नदी किनारे गन्ना खाते है
गाँव हमारा .....

आम अमरूद की बात ही क्या
कच्चे पपीते पे भी हमला होता है
जो जितना खाने से रोके किसी को
वो उतना ही अपने सामान को खोता है
गाँव हमारा .....

पूरब में देवी माँ का मन्दिर है
पश्चिम में डाक बाबा का ठिकान
उत्तर भर भोले बाबा है
दक्षिण में है वीर हनुमान
गाँव हमारा .....

सर्दी और बरसात में सब
नदी में गोता लगाते है
गर्मी के मौसम में सारे
उत्तर भर केविन पर नहाते है
गाँव हमारा ....

किसी मुसीबत के आने पे
सारे लोग मिलकर लड़ते है
दुश्मन चाहे जैसा भी हो
नही किसी से वो डरते है
गाँव हमारा .....
पूर्वज की अरखी इज्ज़त को
सब अपनी धरोहर मानते है
इसीलिए सरे इअलाके वाले हमे
वीर पुरूष के नाम से जानते है
गाँव हमारा .....

एकता है बल हमारा
आपसी प्रेम देता है सहारा
विनती करता हु मई प्रभुसे
लूँ इसी गाँव में जन्म दुबारा

गाँव हमारा कितना प्यारा ...

बातों से

बातों से यार तेरी मैंने प्यार किया है
बातों से ही तेरा दीदार किया है
बातों से ही मैंने यार तुझको छुया है
बातों में बसती हम दोनों की दुआ है

बातों ही बातों में बात बन गई
बातों से हाथो को हाथ मिल गई
बातों से जन्मो का साथ मिल गई
बातों से वादों का दौर चल पडा

बातों को मत रुकने देना
बातों को मत झुकने देना
बातें ये न टूटने पाए
बातों ये न रूठने पाए

बातों का मैंने तेरा इंतज़ार किया है
बातों से ही तो हमने इकरार किया है
बातों से हमने सैकड़ों तकरार किए हैं
बातों से ही फ़िर समझौते हर बार किए हैं

बातों ने ही तो जीने का मतलब है बताया
बातों ने ही तो जिंदगी से मुझको मिलाया
बातों ने उसकी बातों का जाम पिलाया
बातों का यार मुझपे अब नशा सा है छाया


बातों में अब खोये रहना
बातें हो चाहे सोये रहना
बातों का डोर हाथों से न छुटने पाये
बातों का खजाना न कोई लूटने पाए

ये इंतज़ार

ये इंतज़ार कितना प्यारा है
हर एक ख्वाब अब तो तुम्हारा है ...
खड़े है दरपे अपने मंजील के
करीब आ गए है साहिल के
कितना हसी दिख रहा किनारा है
हर एक ख्वाब आब तुम्हारा है

तन्हा था जो सफर मेरा वर्षों से
था इन्तेज़ार जिसका मुझको कई अर्षों से
आनेवाला अब हमसफ़र हमारा है
हर एक ख्वाब आब तुम्हारा है

मिलेगी जब मेरी नज़रें उनकी नज़रों से

होगा सामना फिर थरथराती अधरों से
यही सोंच अब बन गया मेरा सहारा है
हर एक ख्वाब आब तुम्हारा है
ये इंतज़ार कितना प्यारा है....