Wednesday, June 23, 2010

देश में परदेशी

अपने हीं देश में हम
आज परदेशी हो गए
जिसपे गुरुर था हमे कभी
आज वो सारे देशी हुनर
जाने कहाँ खो गए

सारे जोश , सारे जूनून
आज सुसुप्तावस्था में क्यूँ हैं
जो सपने देखे थे हमने
देश को सवांरने के ,
मेरी निंद्रा के साथ
आज मेरे सपने भी सो गए

नयी भाषा का ज्ञान मिला
बहुत अच्छा ,
नयी संस्कृति से नाता बना
बहुत अच्छा ,
पर अपनी भाषा संस्कृति के ज्ञान हीं
दूर होते चले गए
अपने हीं देश में हम
आज परदेशी हो गए

तरस जाते है घर जाने को
गाँव की गलियों में दोस्तों के साथ
धमाचौकड़ी मचाने कों,
इस दिखावे की जिंदगी जीते जीते
वास्तविक जीवन के सारे रस को गए
अपने ही देश में हम
आज परदेशी हो गए