Wednesday, September 10, 2008

किसपे यकीं करू मैं

किसपे यकीं करू मैं
अब तो आँखों ने भी
सच का दामन छोड़ दिया है
हर मानव ने आज तो आँखों पर
झूठ का चादर ओड़ लिया है

यथार्थ से रिश्ते ख़त्म कर
नाता दिखावे से जोड़ लिया है
भौतिक सुख पाने के खातिर
आलौकिक सुख से मुख मोड़ लिया है
किसपे यकीं करू मै .......

अपने अस्तित्व को खोने की
ये कैसी अनोखी होड़ है
आँख वाले भाग रहे है
ऐसे मानो ये अंधों की दौड़ है
किसपे यकीं करू मै.........

इस पतन के दौर में
सच घुट-घुट कर दम तोड़ रहा है
झूठ, फरेब और भ्रष्टाचार
मानवता के मेरुदंड को तोड़ रहा है
किसपे यकीं करू मै .........

मुरलीधर, वन्शीवाले का हम
कब तक और इन्तेज़ार करें
सच की यही पुकार है कि
हे कृष्ण, पाप का अब जल्दी संहार करें
अब जल्दी संहार करें, अब जल्दी संहार करें

1 comment:

SATYAKAM said...

पाप हमारे मन में हैं, फिर
कैसे कृष्ण संघार करे |
आखिर किसका अस्थि-विसर्जन कर,
किसका वो उद्धार करे ?

राह खुद अवरुद्ध कर अपना,
साँस दंभ का हम भरे |
मानवता के नाम पे मानव
खुद का ही संघार करे |

बोलो, पंकज,
फिर कैसे कृष्ण मानवता का उद्धार करे |

~Sattu