मेरे सपनों के मन्दिर में
युग बाद आज तुम आयी हो
अपनी पूजा की थली में
माला नाम के किसके लाई हो।
सोंचा था गुम हो तुम उन दिशाऔं में
जहाँ मैं ढुँढ न तुमको पाऊँगा
अपनी सपनों और आशाओं में
पर तुमने आज मेरे सारे
सोये उन्माद जगा डाले
यथार्थ नहीं कल्पना मे हीं सही
अवांछित फल हैं दे डाले।
मिलों की लम्बी दुरी को
चन्द लम्हों के लिए मिटा डाला
इस अन्मनस्क आशिक को
राह नई दिखा डाला।
है झुम रहा ऐ मेरा तन
प्रणय गीत गा रहा मेरा मन
नए पुष्प खिल उठे, छई हरियाली
विराना सा था जो इस दिल का चमन।
आज मैं फिर से एक बार
भाव विह्वल होने हूँ लगा
आनदातिरेक की लहरों में
एक बार फिर बहने हूँ लगा।
शुक्रिया कहूँ गर मैं तुमको
अपमान तुम्हारा है उसमें
हैं शब्द नहीं मेरे शब्दों की झोली में
सम्मान तेरा बढे जिसमें।
Wednesday, September 10, 2008
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