Tuesday, August 10, 2010

हे देव!! मै मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं| भाग -२

कहीं सूखे की मार
कहीं बाढ़ से मची तबाही है
कहीं नक्सलियों का प्रकोप
कहीं आतंक को मिल रही बाहबाही है

हैं मंत्री भ्रष्ट , संत्री है भ्रष्ट
भ्रष्ट सौ में से ९९ अधिकारी हैं
ये कैसा असाध्य रोग लगा देश को
यहाँ तो भ्रष्ट बननेके लिए मची मारामारी है

इस तबाही का, इस प्रकोप का
भ्रष्टाचार और आतंक के तोप का
क्या होगा कभी भी अंत नहीं
हे देव !! कैसे मैं तेरा स्मरण करूँ अभी भी
मै मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं

धरती का स्वर्ग था देश का मुकुट
आज वहां जाने से भी डर लगता है
जल रहा है मेरा स्वर्ग वहां
तू आज कुछ चमत्कार क्यूँ नहीं करता है

जब मासूम बच्चो का
बन्दुक खिलौना बन जाए
मुर्गों की बांग नहीं जिनको
गोलियों की आवाज हर सुबह जगाये

तब कैसे ना स्वर्ग वहाँ से
चला जाए दूर कहीं
पर तुम तो सर्वेसर्वा हो
फिर क्यूँ बैठे हो मूक कहीं

मेरी बातें हैं सत्य प्रभु
ये कोई कहानी मनगढ़ंत नहीं
हे देव!! कैसे तेरा स्मरण करूँ अभी भी
मैं मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं

चंगेज ने पहले लूटा
फिर अंग्रेज की बारी थी
और आज भी नेता जी लुट रहे हैं
तब यकीन हुआ की वास्तव में
सोने की चिड़िया देश हमारी थी

घोटालों के अनगिनत नाम हमेशा
याद रहती सबके मुह - जुबानी है
क्योंकि देश के सामने आता
हरदिन घोटालों की, एक न एक नवीन कहानी है

इतना सब कुछ होने पर भी
कैसे होता तेरी निंद्रा का अंत नहीं
हे देव!! कैसे तेरा स्मरण करूँ अभी भी
मैं मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं

राष्ट्र मंडल खेल था
बनाने वाला अपने देश की शान
पर चमत्कार देखो तुम भी
मिल गया उसे भ्रष्ट मंडल खेल का नाम

नामकरण यहीं से शुरू हुआ नहीं
आई पी एल , इंडियन प्रिमिएर लीग से
इंडियन पैसा लीग था बना अभी
क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष
इस पैसाखोरी में है मिले सभी

वो सीना तान के कहते है हम लूटेंगे
क्योंकि हम किसी मठ के महंत नहीं
हे देव!! कैसे तेरा स्मरण करूँ अभी भी
मैं मानव हूँ , कोई साधू या संत नहीं