अपने हीं देश में हम
आज परदेशी हो गए
जिसपे गुरुर था हमे कभी
आज वो सारे देशी हुनर
जाने कहाँ खो गए
सारे जोश , सारे जूनून
आज सुसुप्तावस्था में क्यूँ हैं
जो सपने देखे थे हमने
देश को सवांरने के ,
मेरी निंद्रा के साथ
आज मेरे सपने भी सो गए
नयी भाषा का ज्ञान मिला
बहुत अच्छा ,
नयी संस्कृति से नाता बना
बहुत अच्छा ,
पर अपनी भाषा संस्कृति के ज्ञान हीं
दूर होते चले गए
अपने हीं देश में हम
आज परदेशी हो गए
तरस जाते है घर जाने को
गाँव की गलियों में दोस्तों के साथ
धमाचौकड़ी मचाने कों,
इस दिखावे की जिंदगी जीते जीते
वास्तविक जीवन के सारे रस को गए
अपने ही देश में हम
आज परदेशी हो गए
Wednesday, June 23, 2010
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6 comments:
Wah Prince Wah!! bahut achcha as usual.. har mod pe hume naye basha naye disha sikhaana toh humaare desh ki sanskruti hai! Aur hum sab jab saath hote hain toh pardesh ka bhi par kaath sakte hain.. wht say??
Good one Pankaj!!!Way to go...
बात तो आपकी बिल्कुल सही हैं...
लेकिन रास्ता भी तो कुछ नहीं हैं|
कल राह नया हम चुनने गए
और आज अपने देश में परदेशी हो गए|
तरस जाते है घर जाने को
गाँव की गलियों में दोस्तों के साथ
धमाचौकड़ी मचाने कों,
इस दिखावे की जिंदगी जीते जीते
वास्तविक जीवन के सारे रस को गए
अपने ही देश में हम
...........
this is the most touching line mausa ji.....
maja aa gya.....
thank u all... :):)
@ Supriya: ur comment is inspired by Rajnigandha paan masala.. what say.. :P:P waise totally agree wid u
@Satyakam: Par ab kya kare babaji.. kaise deshi bana jaye yahi soch paresa kar rahi hai.. Aap hi marg prashashth kare..
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