Tuesday, July 22, 2008

मेरी दूल्हन

महफिल है हुई हसीन
शमाँ भी यहाँ का है रंगीन
कौन है मेरी दिल्वर ये कहना है नामुमकीन।
कुछ खाती हैं बल अल्हङ मस्त जवानी से
कुछ हैं मादकता मे लीन
कुछ चंचल हैं तितली के जैसी
कुछ अदा से हैं शालीन।

किसी के होंठ नशीलें हैं
किसी के सुर्ख हैं हाँ गाल
किसी की आँखें सागर हैं
किसी के जुल्फ हैं मायाजाल।

किसी की बोली कोयल सी
कोई चले मयुर की चाल
किसी के यौवन दिल के तार बजाए
किसी के हुनर हैं बेमिशाल।

सब कुछ है हाँ इस महफिल में
फिर् भी हूँ मैं बङी मुश्किल में
है कहाँ पर वो हुस्न परी
जो घर कर जाये मेरे दिल में।
ढूँढू मैं हर दम एक परी
गुण जिसमें हों उपर की सारी भरी
देखते हीं जिसको दिल बोले
हाँ यही तो है दुल्हन मेरी।

1 comment:

Amit K Sagar said...

अच्छा लिखा है, लिखते रहिये.
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यहाँ भी पधारे;
उल्टा तीर